मध्यप्रदेशराज्य

ठेका कर्मियों के भरोसे सरकारी सिस्टम

भोपाल । मप्र में साल-दर-साल सरकारी अधिकारी-कर्मचारी रिटायर हो रहे हैं और उनकी जगह नहीं भर्तियां करने की बजाय आउटसोर्स कर्मचारियों और ठेका श्रमिकों को तैनात किया जा रहा है। इस तरह मंत्रालय से लेकर कलेक्टोरेट तक सरकारी सिस्टम ठेका कर्मियों के भरोसे हो गया है। जानकारों का कहना है कि सरकार में ठेका प्रणाली की यह घुसपैठ कभी भी प्रशासनिक ढांचा को बैठा सकता है। प्रदेश के सरकारी विभागों, उपक्रमों, निगम, मंडल, बिजली कंपनियों, दुग्ध सहित अन्य विभागों में 4.25 लाख से अधिक ठेका श्रमिक और आउटसोर्स कर्मचारी काम कर रहे हैं। मंत्रालय में ही कर्मचारियों की संख्या जिस गति से हर महीने घट रही है, उस गति से बढ़ नहीं रही है। मंत्रालय में 2539 स्वीकृत पदों के विरुद्ध 1345 कर्मचारी ही रह गए हैं। जिनमें सबसे ज्यादा तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के हैं। यही स्थिति सरकार के अन्य लगभग सभी कार्यालयों की है। जहां नियमित कार्यरत कर्मचारियों की संख्या कुल स्वीकृत पदों से आधी से भी कम बची है। प्रदेश में पिछले एक-डेढ़ दशक में सरकारों ने रिक्त पदों को भरने की बजाय ठेका प्रणाली से प्रशासनिक तंत्र को चलाने की जुगाड़ बैठाई थी। अब ज्यादातर विभागों में सीधी भर्ती वाले कर्मचारी उतने भी नहीं बचे कि आगे प्रशासनिक तंत्र को खींचा जाए। यही स्थिति रही तो प्रशासनिक तंत्र कभी भी बैठ सकता है।

जीएडी ने मांगी खाली पदों की जानकारी
सामान्य प्रशासन विभाग ने प्रदेश के सभी विभागों में खाली पदों की गणना शुरू कर दी है। जिसके आधार पर सरकार अगले 5 साल के भीतर भर्ती की प्रक्रिया को पूरा करेगी। कर्मचारी नेताओं के अनुसार मौजूदा स्थिति में राज्य में करीब 2.50 लाख नियमित कर्मचारी बचे हैं। 2026 तक यह संख्या घटकर 1.50 लाख तक रह जाएगी। इसके अनुपात में संविदा कर्मचारियों की संख्या 3 लाख से ज्यादा है। जबकि आउटसोर्स कर्मचारियों की संख्या का कोई प्रमाणित आंकड़ा किसी विभाग के पास नहीं है, फिर भी पंचायत, वार्ड कार्यालयों से लेकर मंत्रालय तक करीब 1.25 लाख कर्मचारी ठेकादारों के माध्यम से सरकार में काम कर रहे हैं।

मंत्रालय में बचे मात्र 1345 कर्मचारी
प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों की कमी का आकलन इसी से किया जा सकता है कि मंत्रालय में प्रथम श्रेणी से लेकर चतुर्थ श्रेणी तक 2539 पद स्वीकृत हैं। जिनके विरुद्ध 1345 पद ही भरे हैं। खास बात यह है कि प्रथम श्रेणी के अतिरिक्त सचिव के 3 पद, उप सचिव के 14 पद पूरी तरह से खाली हैं। अवर सचिव के 57 पदों के विरुद्ध सिर्फ 18 अधिकारी बचे हैं, जबकि 39 पद खाली हैं। सरकार ने तंत्र को चलाने के लिए मंत्रालय सेवा के अधिकारियों की जगह मैदानी अधिकारी एसडीएम, तहसीलदार एवं नायब तहसीलदारों को पदस्थ कर रखा है। कर्मचारी नेता सुभाष वर्मा का कहना है कि अटैचमेंट और आउटसोर्स के जरिए ज्यादा वक्त तक प्रशासनिक तंत्र को नहीं चलाया जा सकता है। सरकार को चाहिए कि पदोन्नति का रास्ता निकाले और नियमित भर्तियां शुरू करे। कार्यालयों में अनुभवी कर्मचारियों का टोटा है। बाहरी लोग कुछ भी कर रहे हैं। तत्काल कदम उठाने की जरूरत है।

मप्र में अधिकांश पद खाली
मप्र में अधिकारियों-कर्मचारियों की स्थिति यह है कि अधिकांश पद खाली पड़े हैं। 19 नवंबर की स्थिति में मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव के 3 पद स्वीकृत हैं जो खाली पड़े हैं। वहीं उप सचिव के भी सभी 14 पद खाली हैं। अवर सचिव के 57 पदों में से 17 भरे हैं और 40 खाली हैं। स्टॉफ ऑफीसर के 18 पदों में 10 भरे हैं 8 खाली है। अनुभाग अधिकारी के 143 पदों में से 114 खाली, निज सचिव के 60 पदों में से 25 खाली, सहा. अनुभाग अधि. के 338 पदों में से 237 खाली, सहा. ग्रेड-2 के 335 पदों में से 118 खाली, सहा. ग्रेड-3 के 602 पदों में से 131 खाली, निज सहायक के 128 पदों में से 62 खाली, शीघ्र लेखक के 53 पदों में से 21 खाली, स्टेनो टायपिस्ट के 84 पदों में से 43 खाली, तकनीकी श्रेणी के 69 पदों में से 59 खाली और  चतुर्थ श्रेणी के 635 पदों में से 319 खाली हैं।

5 साल में रिटायर होंगे एक लाख अधिकारी-कर्मचारी
मप्र्र के 73 फीसदी क्लास-वन अधिकारी और 53 फीसदी क्लास-टू अफसरों की उम्र 45 साल से ज्यादा है। इसके अनुपात में क्लास-वन युवा अफसरों की संख्या 27 प्रतिशत तो क्लास टू कैटेगरी के अधिकारी 47 प्रतिशत हैं। आने वाले 5 साल में सभी कैटेगरी के एक लाख से ज्यादा अधिकारी-कर्मचारी रिटायर होने वाले हैं। इस स्थिति ने सरकार को चिंता में डाल दिया है। पिछली कैबिनेट मीटिंग में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने सभी विभागों से खाली पदों का ब्योरा मांगा है। ब्योरा मिलने के बाद सीएम मुख्य सचिव अनुराग जैन के साथ इसी महीने बैठक करेंगे। जानकारों की मानें तो ऐसी स्थिति इसलिए बनी क्योंकि भर्ती प्रक्रिया के प्रति सरकार गंभीर नहीं है। इसका असर आने वाले समय में सरकार के कामकाज पर पडऩा तय है। जानकार ये भी मानते हैं कि युवाओं की भर्ती नहीं होने से आने वाले समय में नवाचार और नई टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल में कमी आएगी।

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