मध्यप्रदेशराज्य

10 साल पहले जोर-शोर से शुरू की थी योजना, अब पड़ी है ठप

भोपाल । 10 साल पहले तत्कालीन शिवराज सरकार ने नदी जोड़ो योजना का ढोल पीटते हुए नर्मदा-क्षिप्रा लिंक परियोजना पर 432 करोड़ रुपए फूंक डाले और जोर-शोर से कैबिनेट की बैठक के साथ इस परियोजना का शुभारंभ उज्जैनी में किया। मगर उसके बाद से यह परियोजना ही बोगस साबित हुई और 700 करोड़ रुपए से अधिक की राशि उज्जैन और देवास नगर निगम पर ही पानी के बिल की बकाया हो गई। एनवीडीए कई मर्तबा इस राशि को जमा करने के तगादे भी संबंधित निगमों के अलावा शासन के समक्ष कर चुका है। अब सिर्फ बारिश में ही शिप्रा में पानी नजर आता है। बाकी के 8 महीने रेगिस्तान की तरह सूखी रहती है।
यहां तक कि सांवेर के भी तमाम गांवों को इस परियोजना के तहत पानी मिलने का दावा क्षेत्रीय विधायक और मंत्री तुलसीराम सिलावट ने किया था। जमीन अधिग्रहण का विरोध कर रहे किसान नेता हंसराज मंडलोई ने आरोप लगाया कि नर्मदा-क्षिप्रा लिंक प्रोजेक्ट सालों से बंद पड़ा  है और क्षेत्र के अन्नदाता खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं, क्योंकि दावा किया था कि इस परियोजना के चलते किसानों को भी सिंचाई के लिए भरपूर पानी मिलेगा। शुरुआत के दो-तीन साल तक तो नर्मदा का पानी शिप्रा में इस परियोजना के जरिए छोड़ा जाता रहा, मगर विगत कुछ वर्षों से यह परियोजना लगभग ठप ही पड़ी है। नतीजतन अब केवल बारिश के चार महीनों में ही नदी में पानी दिखता है और शेष 8 महीने क्षिप्रा नदी रेगिस्तान में बदल जाती है। मंडलोई का यह भी कहना है कि नर्मदा के पानी कीदो-दो पाइप लाइनें सांवेर क्षेत्र से निकलती है। एक पाइप लाइन हातोद के पास से गांवों से गुजरती हुई उज्जैन तक जाती है, तो दूसरी पाइप लाइन उज्जैन के ही क्षिप्रा-मांगलिया क्षेत्र से होकर निकलती है। मगर यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस विभाग के मंत्री खुद सिलावट हैं, उनके क्षेत्र के किसानों को ही पानी नहीं मिल रहा है।

700 करोड़ से ज्यादा का पानी बिल बकाया
दूसरी तरफ नर्मदा-क्षिप्रा लिंक परियोजना पर भी अब सवाल उठने लगे हैं, क्यों कि 432 करोड़ रुपए की राशि एक तरह से फिजूल खर्च हुई और उससे दोगुना तो पानी के बिल का पैसा ही उज्जैन-देवास निगमों पर बकाया हो गया है। सालभर पहले ही 700 करोड़ रुपए से अधिक की राशि एनवीडीए मांग रहा था। परियोजना के संचालन पर सालाना जितनी राशि खर्च होती है उतनी आमदनी तो है ही नहीं। यानी इस परियोजना की स्थिति भी नर्मदा की उस परियोजना की तरह है जिसके जरिए जलूद का पानी इंदौर लाकर वितरित किया जाता है और इंदौर नगर निगम भी उसका बिजली का बिल नहीं भर पाता। नतीजतन शासन चुंगी क्षतिपूर्ति या अन्य मदों की राशि में से राशि काटकर बिजली के रुपए देता है। 10 साल पहले जब नदी जोड़ो अभियान के तहत नर्मदा-क्षिप्रा लिंक परियोजना का लोकार्पण किया गया था तब शासन-प्रशासन की ओर से यह दावा किया गया कि दो नदियों के संगम से मालवा नर्मदा की जमीन समृद्ध होगी और इस अंचल का जलसंकट हमेशा के लिए मिट जाएगा। सिंचाई के साथ-साथ उद्योगों को भी भरपूर पानी मिलेगा। 22 रुपए 60 पैसे प्रति हजार लीटर पानी की कीमत भी तय की गई और दोनों नगर निगमों को पानी देने के अलावा कुछ समय तक आईआईटी इंदौर कैम्पस और उद्योगों को पानी दिया। मगर अब लगभग यह परियोजना ही बोगस साबित होकर ठप पड़ी है।

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