धर्म

बड़ा ही चमत्कारी है महादेव का यह मंदिर, यहां खड़े दीये जलाने से होती है संतान की प्राप्ति! विदेशों से तक आते हैं भक्त

जब दवाइयां काम न आए और विज्ञान भी हार मान जाए, तब लोगों को एक आस की किरण आध्यात्म में नजर आती है. इसकी बानगी हमें कमलेश्वर महादेव मंदिर में देखने को मिलती है. यहां कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के दिन हजारों लोगों का हुजूम उमड़ता है. मान्यता है कि यहां निसंतान दम्पति यदि खड़े दीप का अनुष्ठान करें तो उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है. इस बार बैकुण्ठ चतुर्दशी के अवसर पर संतान प्राप्ति के लिए सिद्धपीठ कमलेश्वर महादेव मंदिर में 177  देश-विदेश से आए निसंतान दम्पतियों ने खड़ा दीया अनुष्ठान किया. इसमें पोलैंड से आए एक विदेशी दम्पति, क्लाऊडिया और स्टेफन भी शामिल थे.

पोलैंड से खड़े दीये का अनुष्ठान करने पहुंचे दंपति

कमलेश्वर मंदिर के महंत आशुतोष पूरी ने लोकल 18 को बताया कि इस बार बैकुंठ चतुर्दशी के अवसर पर खड़े दीये अनुष्ठान में 177 दंपति शामिल हुए, जिनमें पोलैंड से आए एक विदेशी दंपति, क्लाऊडिया और स्टेफन भी थे. उन्होंने बताया कि यहां देश-विदेश से निसंतान दंपति खड़े दीप का अनुष्ठान करने के लिए आते हैं. इस बार देश के विभिन्न राज्यों से भी निसंतान दंपति खड़े दीप का अनुष्ठान करने के लिए पहुंचे हैं.

संतान प्राप्ति के लिये खड़े दीये का अनुष्ठान

कमलेश्वर महादेव मंदिर में खड़े दीये का अनुष्ठान करने के लिए पहुंची एकता ने लोकल 18 को बताया कि उन्होंने कमलेश्वर मंदिर से जुड़ी मान्यता के बारे में सुना था. अब तक उन्हें संतान नहीं हुई है, इसलिए वे कमलेश्वर मंदिर में खड़े दीप का अनुष्ठान करने के लिए आईं हैं. उन्होंने कहा कि उनकी कमलेश्वर मंदिर पर विशेष आस्था है और कई निसंतान दंपतियों को यहां खड़े दीप अनुष्ठान करने पर संतान प्राप्ति हुई है.

यह है कमलेश्वर मंदिर से जुड़ी मान्यता मान्यता

पौराणिक मान्यता के अनुसार, देवता दानवों से पराजित हो गए थे, जिसके बाद वे भगवान विष्णु की शरण में गए. दानवों पर विजय प्राप्त करने के लिए भगवान विष्णु यहां भगवान शिव की तपस्या करने आए. पूजा के दौरान उन्होंने शिव सहस्रनाम के अनुसार शिवजी के नाम का उच्चारण करते हुए एक-एक कर सहस्र (एक हजार) कमलों को शिवलिंग पर चढ़ाना शुरू किया. विष्णु की परीक्षा लेने के लिए शिव ने एक कमल पुष्प छिपा लिया. एक कमल पुष्प की कमी से यज्ञ में कोई बाधा न पड़े, इसके लिए भगवान विष्णु ने अपना एक नेत्र निकालकर अर्पित करने का संकल्प लिया. इस पर प्रसन्न होकर भगवान शिव ने भगवान विष्णु को अमोघ सुदर्शन चक्र दिया, जिससे उन्होंने राक्षसों का विनाश किया. सहस्र कमल चढ़ाने की वजह से इस मंदिर को कमलेश्वर महादेव मंदिर कहा जाने लगा. इस पूजा को एक निसंतान ऋषि दंपति देख रहे थे. मां पार्वती के अनुरोध पर शिव ने उन्हें संतान प्राप्ति का वरदान दिया. तब से यहां कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी (बैकुंठ चतुर्दशी) की रात संतान की मनोकामना लेकर लोग पहुंचते हैं और खड़े दीप का अनुष्ठान करते हैं.

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