बिलासपुर । बिना मुआवजा किसानों की जमीन पर पर सडक़ बनाने के खिलाफ दायर याचिका पर 40 साल बाद फैसला आया है। हाईकोर्ट ने बिना अनुमति किसानों की जमीन पर अतिक्रमण को गलत बताया है। जांजगीर जिला प्रशासन को तीन महीने के अन्दर क्षेत्र की जमीन का सीमांकन कर भूमि अधिग्रहण कार्रवाई पूरा करने को कहा है। मामला जांजगीर जिले के जैैजेपुर का है। किसानों ने बिना अनुमति खेत से डब्लूबीएम सडक़ निकाले जाने के खिलाफ 1983-84 में याचिका पेश कर निर्माण का विरोध किया था। मामला जांजगीर चाम्पा जिला के जैजैपुर ब्लाक स्थित ग्राम खम्हारडीह मुरलीडीह का है।भागवत दास, ताराचंद, दुखवा केवट समेत स्थानीय 10 किसानों की जमीन से शासन ने 983-84 में नंदेली से कचंदा तक डब्ल्यूबीएम सडक़ निर्माण किया। लेकिन शासन की तरफ से किसानों को मुआवजा नहीं दिया गया। किसानों की तरफ से अधिवक्ता योगेश चंद्रा ने हाईकोर्ट में याचिका पेश किया। किसानों की तरफ से अधिवक्ता ने बताया कि लोक निर्माण विभाग, कलेक्टर , भूअर्जन अधिकारी समेत अन्य को पक्षकार बनाया गया है। शासन की तरफ से जवाब में बताया गया कि किसानों की जमीन पर सडक़ का निर्माण आपदा राहत योजना के तहत किया गया है। किसानों ने सडक़ के लिए स्वेच्छा से जमीन दिया है। इसके अलावा याचिका विलंब से पेश हुआ है। इसलिए याचिका को खारिज किया जाना उचित होगा। हाईकोर्ट न्यायाधीश बीडी गुरु ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुनाया। जस्टिस गूरू ने आदेश दिया कि विधि के अनुसार राज्य को किसी की सम्पति पर अतिक्रमण का अधिकार नहीं है। शासन को याचिकाकर्ता से संबंधित क्षेत्र का सीमांकन करना होगा। इसके बाद ही अधिग्रहण की कार्यवाही की जाए। सीमांकन तीन माह की अवधि के भीतर पूरा किया जाए। इसके बाद भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही तैयार की जाएगी।
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